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Mantra Rig 01.150.001

MANTRA NUMBER:

Mantra 1 of Sukta 150 of Mandal 1 of Rig Veda

Mantra 1 of Varga 19 of Adhyaya 2 of Ashtak 2 of Rig Veda

Mantra 80 of Anuvaak 21 of Mandal 1 of Rig Veda

 

 

MANTRA DEFINITIONS:

ऋषि:   (Rishi) :- दीर्घतमा औचथ्यः

देवता (Devataa) :- अग्निः

छन्द: (Chhand) :- भुरिग्गायत्री

स्वर: (Swar) :- षड्जः

 

 

THE MANTRA

 

The Mantra with meters (Sanskrit)

पु॒रु त्वा॑ दा॒श्वान्वो॑चे॒ऽरिर॑ग्ने॒ तव॑ स्वि॒दा तो॒दस्ये॑व शर॒ण म॒हस्य॑

 

The Mantra without meters (Sanskrit)

पुरु त्वा दाश्वान्वोचेऽरिरग्ने तव स्विदा तोदस्येव शरण महस्य

 

The Mantra's transliteration in English

puru tvā dāśvān voce 'rir agne tava svid ā | todasyeva śaraa ā mahasya 

 

The Pada Paath (Sanskrit)

पु॒रु त्वा॒ दा॒स्वान् वो॒चे॒ अ॒रिः अ॒ग्ने॒ तव॑ स्वि॒त् तो॒दस्य॑ऽइव श॒र॒णे म॒हस्य॑

 

The Pada Paath - transliteration

puru | tvā | dāsvān | voce | ari | agne | tava | svit | ā | todasya-iva | śarae | ā | mahasya 


महर्षि दयानन्द सरस्वती  Maharshi Dayaananda Saraswati

मन्त्र संख्याः

 

संस्कृत

हिन्दी

०१।१५०।०१

मन्त्रविषयः

अथ विद्वद्गुणानाह ।

अब एकसौ पचासवें सूक्त का प्रारम्भ है । उसके मन्त्र में विद्वानों के गुणों का उपदेश करते हैं ।

 

पदार्थः

(पुरु) बहु (त्वा) त्वाम् (दाश्वान्) दाता (वोचे) वदेयम् (अरिः) प्रापकः (अग्ने) विद्वन् (तव) (स्वित्) एव (आ) (तोदस्येव) व्यथकस्येव (शरणे) गृहे (आ) (महस्य) महतः ॥१॥

हे (अग्ने) विद्वान् ! (दाश्वान्) दान देने और (अरिः) व्यवहारों की प्राप्ति करानेवाला मैं (महस्य) महान् (तोदस्येव) व्यथा देनेवाले के जैसे वैसे (तव) आपके (स्वित्) ही (आ, शरणे) अच्छे प्रकार घर में (त्वा) आपको (पुरु, आ, वोचे) बहुत भली-भाँति से कहूँ ॥१॥

 

अन्वयः

हे अग्ने दाश्वानरिरहं महस्य तोदस्येव तव स्विदा शरणे त्वा पुर्वा वोचे ॥१॥

 

 

भावार्थः

यो यस्य भृत्यो भवेत् स तस्याऽज्ञां पालयित्वा कृतार्थो भवेत् ॥१॥

जो जिसका रक्खा हुआ सेवक हो, वह उसकी आज्ञा का पालन करके कृतार्थ होवे ॥१॥








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