MANTRA NUMBER:
Mantra 9 of Sukta
86 of Mandal 1 of Rig Veda
Mantra 4 of Varga
12 of Adhyaya 6 of Ashtak 1 of Rig Veda
Mantra 21 of
Anuvaak 14 of Mandal 1 of Rig Veda
MANTRA
DEFINITIONS:
ऋषि: (Rishi)
:- गोतमो राहूगणः
देवता (Devataa) :- मरूतः
छन्द: (Chhand) :- गायत्री
स्वर: (Swar) :- षड्जः
THE MANTRA
The Mantra with
meters (Sanskrit)
यू॒यं तत्स॑त्यशवस आ॒विष्क॑र्त महित्व॒ना । विध्य॑ता वि॒द्युता॒ रक्ष॑: ॥
The Mantra
without meters (Sanskrit)
यूयं तत्सत्यशवस आविष्कर्त महित्वना । विध्यता विद्युता रक्षः ॥
The Mantra's
transliteration in English
yūyaṁ tat satyaśavasa āviṣ
karta mahitvanā | vidhyatā vidyutā rakṣaḥ ||
The Pada Paath
(Sanskrit)
यू॒यम् । तत् । स॒त्य॒ऽश॒व॒सः॒ । आ॒विः । क॒र्त॒ । म॒हि॒ऽत्व॒ना
। विध्य॑त । वि॒ऽद्युता॑ । रक्षः॑ ॥
The Pada Paath -
transliteration
yūyam | tat |
satya-śavasaḥ | āviḥ | karta | mahi-tvanā | vidhyata | vi-dyutā | rakṣaḥ ||
महर्षि दयानन्द सरस्वती Maharshi Dayaananda Saraswati
०१।०८६।०९
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मन्त्रविषयः-
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अथेतरमनुष्यैस्ते सभाध्यक्षादयो मनुष्याः कथं
प्रार्थनीया इत्युपदिश्यते।
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अब और मनुष्यों को उन सभाध्यक्ष आदि मनुष्यों
से कैसे प्रार्थना करनी चाहिये, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है।
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पदार्थः-
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(यूयम्) (तत्) (सत्यऽशवसः) नित्यं बलं येषान्तत्सम्बुद्धौ
(आविः) प्रकटीभावे (कर्त्तं) कुरुत। विकरणस्यात्र लुक्। (महित्वना) महिम्ना
(विध्यता) ताडनकर्त्रा (विद्युता) विदुयन्निष्पन्नेनास्त्रसमूहेन (रक्षः)
दुष्टिकर्मकारीः मनुष्यः ॥९॥
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हे (सत्यशवसः) नित्य बलयुक्त सभाध्यक्ष आदि
सज्जनो ! (यूयम्) तुम (महित्वना) उत्तम यश से (तत्) उस काम को
(आविः) प्रकट (कर्त्त) करो कि जिससे (विद्युता) बिजुली के लोहे से बनाये हुए
शस्त्र वा आग्नेयादि अस्त्रों के समूह से (रक्षः) खोटे काम करनेवाले दुष्ट
मनुष्यों को (विध्यता) ताड़ना देते हुए मेरी सब कामना सिद्ध हों ॥९॥
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अन्वयः-
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हे सत्यशवसः सभाद्यध्यक्षादयो यूयं महित्वना
तत्काममाविष्कर्त्तं येन विद्युकता रक्षो विध्यता मया सर्वे कामाः प्राप्येरन् ॥९॥
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भावार्थः-
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मनुष्यैः परस्परं प्रीत्या पुरुषार्थेन
विद्याः प्राप्य दुष्टस्वभावगुणमनुनिवार्य कामसिद्धिर्नित्यं कार्येति ॥९॥
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मनुष्यों को चाहिये कि परस्पर प्रीति और
पुरुषार्थ के साथ विद्युत आदि पदार्थविद्या और अच्छे-अच्छे गुणों को पाकर दुष्ट
स्वभावी और दुर्गुणी मनुष्यों को दूरकर नित्य अपनी कामना सिद्ध करें ॥९॥
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