९.३.१
|
उप॒मितां॑
designed प्रति॒मिता॒मथो॑ and exacted परि॒मिता॑मु॒त and measured /
proportioned । न॒द्धानि॒ construction is done वि॒श्ववा॑राया of all sorts शाला॑या
of house वि चृ॑तामसि fine finishing is done by us ॥
|
(विश्ववारायाः) सब ओर द्वारोंवाली वा सब श्रेष्ठ पदार्थोंवाली (शालायाः)
शाला की (उपमिताम्) उपमायुक्त [देखने में सराहने योग्य], (प्रतिमिताम्) प्रतिमान
युक्त [जिसके आमने सामने की भीतें, द्वार, खिड़की आदि एक नाप में हों] (अथो) और भी
(परिमिताम्) परिमाणयुक्त [चारों ओर से नाप कर सम चौरस की हुई] [बनावट] को (उत) और
(नद्धानि) बन्धनों [चिनाई, काष्ठ आदि के मेलों] को (व चृतामसि) हम अच्छे प्रकार ग्रन्थित
[बन्धन युक्त] करते हैं ॥१॥
|
९.३.२
|
यत्ते॑
why so ever your न॒द्धं construction, वि॑श्ववारे॒ of all sorts पाशो॑ of grids
ग्र॒न्थिश्च॒ and joints यः कृ॒तः is being done । तत् वि For the same reason,
exactly, बृह॒स्पति॑रिवा॒हं I, the specialist (architect), स्रं॑सयामि॒ provide
my labour ब॒लं power / capabilities वा॒चा and knowledge ॥
|
(विश्ववारे) हे सब उत्तम पदार्थोंवाली ! (यत्) जिस कारण से (ते) तेरा
(नद्धम्) बन्धन, (पाशः) जाल (च) और (ग्रन्थिः) गांठ (यः) जो (कृतः) बनाई गई है।
(तत्) उसी कारण से (बृहस्पतिः इव) बड़े विद्वान् के समान (अहम्) मैं (बलम्) अन्नराशि
को (वाचा) वाणी [विद्या] के साथ (वि) विशेष करके (स्रंसयामि) पहुंचाता हूं ॥२॥
|
९.३.३
|
ते you
have been आ य॑याम॒ raised above, सं ब॑बर्ह joined together दृ॒ढान् and
strengthened ग्र॒न्थींश्च॑कार with the joints । छस्ते॒वेन्द्रे॑ण॒ dissect the
subject परूं॑षि into parts वि॒द्वां with knowledge वि चृ॑तामसि fine finishing
is done by us. ॥
|
उस [शल्पी] ने (ते) तेरी (ग्रन्थीन्) गाठों को (आ ययाम) फैलाया है,
(सम् बबर्ह) मिलाया है और (दृढान्) दृढ़ (चकार) किया है। (परूंषि) जोड़ों को (विद्वान्)
विद्वान् (शस्ता इव) चीड़ फाड़ करनेवाले [वैद्य] के समान हम लोग (इन्द्रेण) ऐश्वर्य
के साथ (वि) विशेष करके (चृतामसि) बांधते हैं ॥३॥
|
९.३.४
|
ते॒ वं॒शानां॑
your beams are made of नह॑नानां various blocks प्राणा॒हस्य॒ of mortar तृण॑स्य
च and grass । ते प॒क्षाणां॑ विश्ववारे your doors and windows of all sorts न॒द्धानि॒
are fixed and वि चृ॑तामसि fine finishing is done by us ॥
|
(विश्ववारे) हे सब उत्तम पदार्थोंवाली ! (ते) तेरे (वंशानाम्) बांसों,
(नहनानाम्) गांठों (च) और (प्राणाहस्य) बन्धन की (तृणस्य) घास के और (ते) तेरे (पक्षाणाम्)
पक्खों [भीति आदि] के (नद्धानि) बन्धनों को (वि) अच्छे प्रकार (चृतामसि) हम गूथते
हैं ॥४॥
|
९.३.५
|
सं॑दं॒शानां॑
With tongs / forceps / pliers पल॒दानां॒ with thatching materials परि॑ष्वञ्जल्यस्य
च and with other tools । मान॑स्य॒ पत्न्या॑ O respected wife! इ॒दं न॒द्धानि॒
this is constructed वि चृ॑तामसि and finished by us ॥
|
(इदम्) अब (मानस्य) मान [सम्मान] की (पत्न्याः) रक्षा करनेवाली [शाला]
के (संदंशानाम्) संडासियों [वा आंकड़ों] को (च) और (पलदानाम्) पल [अर्थात् सुवर्ण
आदि की तोल और विघटिका मुहूर्त आदि] देनेवाले [यन्त्रों] के (परिष्वञ्जल्यस्य) जोड़
के (नद्धानि) बन्धनों को (वि चृतामसि) हम भली भांति बांधते हैं ॥५॥
|
९.३.६
|
यानि॑ ते॒
ऽन्तः र॒ण्या॑य॒ कम् those who inside you live happily शि॒क्या॑न्याबे॒धू keep
the hammock hoisted । ते॒ पत्नि मा॑नस्य for you, मान॑स्य॒ पत्न्या॑ O
respected wife! शि॒वा न॒ त॒न्वे॑ भव and for our well-being तानि॑ उद्धि॑ता
that has been erected प्र चृतामसि and is well finished by us ॥
|
(ते अन्तः) तेरे भीतर (यानि) जिन (शिक्यानि) छींकों को (कम्) सुख से
(रण्याय) रमणीय वा सांग्रामिक कर्म के लिये (आयेधुः) उन [शिल्पियों] ने भली भांति
बांधा है। (ते) तेरे लिये (तानि) उन सबको (प्र चृतामसि) हम भली भांति दृढ़ करते हैं,
(मानस्य) सन्मान की (पत्नी) रक्षा करनेवाली तू (नः) हमारे (तन्वे) उपकार के लिये
(शिवा) कल्याणी और (उद्धिता) ऊंची उठी हुई (भव) हो ॥६॥
|
९.३.७
|
ह॑वि॒र्धान॑मग्नि॒शालं॒
a room for offering oblations to fire, पत्नी॑नां॒ सद॑नं॒ सदः॑ a room where
wife lives । सदो॑ दे॒वाना॑मसि देवि शाले rooms for the devatas (parents,
teachers and/or guests), there are॥
|
(देवि) हे दिव्य कमनीय (शाले) शाला ! तू (हविर्धानम्) देने लेने योग्य
पदार्थों [वा अन्न और हवन सामग्री] का घर, (अग्निशालम्) अग्नि [वा बिजुली आदि] का
स्थान, (पत्नीनाम्) रक्षा करनेवाली स्त्रियों का (सदनम्) घर और (सदः) सभास्थान और
(देवानाम्) विद्वान् पुरुषों का (सदः) सभास्थान (असि) है ॥७॥
|
९.३.८
|
अक्षु॒मोप॒शं
plinth/foundation वित॑तं spread out सहस्रा॒क्षं innumerably spoked वि॑षू॒वति॑
on a raised-land। अव॑नद्धम॒भिहि॑तं॒ is laid out as told by ब्रह्म॑णा॒ the
knowledgeable वि चृ॑तामसि and is finished/made by us ॥
|
(विषुवति) व्याप्तिवाले [ऊंचे] स्थान पर (विततम्) फैले हुये, (सहस्राक्षम्)
सहस्रों व्यवहार वा झरोखेवाले (ओपशम्) उपयोगी, (ब्रह्मणा) वेदज्ञ विद्वान् करके
(अवनद्धम्) अच्छे प्रकार छाये गये और (अभिहितम्) बताये गये (अक्षुम्) व्याप्तिवाले
[सर्वदर्शक स्तम्भगृह] को (विचृतामसि) हम अच्छे प्रकार ग्रन्थित करते हैं ॥८॥
|
९.३.९
|
शाले O
house यस्त्वा॑ प्रतिगृ॒ह्णाति॒ one who accepts/takes you येन॒ चासि॑ मि॒ता त्वम्
is for whom you have been constructed। मा॑नस्य पत्नि॒ मान॑स्य॒ पत्न्या॑ O
respected wife! उ॒भौ तौ may we two जीव॑तां live ज॒रद॑ष्टी a long life ॥
|
(शाले) हे शाला ! (यः) जो (त्वा) तुझको (प्रतिगृह्णाति) अङ्गीकार करता
है (च) और (येन) जिस करके (त्वम्) तू (मिता असि) बनाई गयी है। (मानस्य पत्नि) हे
सन्मान की रक्षा करनेवाली ! (तौ उभौ) वे दोनों (जरदष्टी) स्तुति के साथ प्रवृत्ति
वा भोजनवाले [होकर] (जीवताम्) जीते रहें ॥९॥
|
९.३.१०
|
अ॒मुत्रै॑न॒माग॑छतात् The one has arrived there दृढा न॒द्धा परि॑ष्कृता strongly built and perfected ।
यस्या॑स्ते which is yours विचृ॒ताम॒स्यङ्ग॑मङ्गं॒ परु॑ष्परुः and is finished
limb by limb and part by part॥
|
(दृढा) दृढ़ बनी हुयी, (नद्धा) छायी हुयी और (परिष्कृता) सजी हुई तू
(अमुत्र) वहां पर (एनम्) इस [पुरुष] को (आ गच्छतात्) प्राप्त हो। (यस्याः ते) जिस
तेरे (अङ्गमङ्गम्) अङ्ग अङ्ग और (परुष्परुः) पोरुये पोरुये को (विचृतामसि) हम अच्छे
प्रकार ग्रन्थित करते हैं ॥१०॥
|
९.३.११
|
शाले O
House यस्त्वा॑ one who has निमि॒माय॑ got you built, वन॒स्पती॑न् संज॒भार॒ got the
components gathered । चक्रे त्वा शाले प्र॒जायै॑ and has got you O house,
built for the people wellbeing परमे॒ष्ठी प्र॒जाप॑तिः is the high positioned
care taker॥
|
(शाले) हे शाला ! (यः) जिस [गृहस्थ] ने (त्वा) तुझे (निमिमाय) जमाया
है और (वनस्पतीन्) सेवन करनेवालों के रक्षक पदार्थों को (संजभार) एकत्र किया है।
(शाले) हे शाला ! (परमेष्ठी) सबसे उच्च पद पर रहनेवाले (प्रजापतिः) उस प्रजा पालक
[गृहस्थ] ने (प्रजायै) प्रजा के सुख के लिये (त्वा) तुझे (चक्रे) बनाया है ॥११॥
|
९.३.१२
|
नम॒स्तस्मै॒
Bow to to the one नमो॑ दा॒त्रे bow to the provider शाला॑पतये bow to the owner
of the house च कृण्मः we do । नमो॒ ऽग्नये॑ We pray to the fire प्र॒चर॑ते॒ पुरु॑षाय
च ते॒ नमः॑ for you who serves others ॥
|
(तस्मै) उस (नमो दात्रे) अन्न देनेवाले (च) और (शालापतये) शाला के स्वामी
को (नमः) सत्कार (कृण्मः) हम करते हैं। (अग्नये) अग्नि [की सिद्धि] को (नमः) अन्न
(च) और (प्रचरते) सेवा करनेवाले (पुरुषाय) पुरुष के लिये (ते) तेरे हित के लिये
(नमः) अन्न होवे ॥१२॥
|
९.३.१३
|
गोभ्यो॒
for cows अश्वे॑भ्यो॒ for horses नमो॒ we pray यच्छाला॑यां वि॒जाय॑ते for
whatever things that can be provided by the house। वि ते॒ May you be विजा॑वति॒
प्रजा॑वति॒ rich in births and children पाशां॑श्चृतामसि we grid and contruct
you॥
|
(गोभ्यः) गौओं के लिये, (अश्वेभ्यः) घोड़ों के लिये और (यत्) जो कुछ
(शालायाम्) शाला में (विजायते) उत्पन्न होवे, [उसके लिये] (नमः) अन्न [होवे]। (विजावति)
हे विविध उत्पन्न पदार्थोंवाली ! और (प्रजावति) हे उत्पन्न प्रजाओंवाली ! (ते) तेरे
(पाशान्) बन्धनों को (विचृतामसि) हम अच्छे प्रकार ग्रन्थित करते हैं ॥१३॥
|
९.३.१४
|
अ॒ग्निम॒न्तश्छा॑दयसि॒
Insulate energy inside yourself पुरु॑षान्प॒शुभिः॑ स॒ह for the people and
animals too । वि ते॒ विजा॑वति॒ प्रजा॑वति॒ For all your fulfilling things पाशां॑श्चृतामसि
we grid and contruct you॥
|
[हे शाला !] (अग्निम्) अग्नि को और (पुरुषान्) पुरुषों को (पशुभिः सह)
पशुओं सहित (अन्तः) अपने भीतर (छादयसि) तू ढक लेती है। (विजावति) हे विविध उत्पन्न
पदार्थोंवाली ! और (प्रजावति) हे उत्तम प्रजाओंवाली ! (ते) तेरे (पाशान्) बन्धनों
को (वि चृतामसि) हम अच्छे प्रकार ग्रन्थित करते हैं ॥१४॥
|
९.३.१५
|
अ॑न्त॒रा
Between द्यां the sun च॑ and पृथि॒वीं earth च॒ यद्व्यच॒स्तेन॒ and the open
space शालां॒ O house प्रति॑ गृह्णामि I accept you त इ॒माम् । यद॒न्तरि॑क्षं॒ वि॒मानं॒
that measured space रज॑सो of house तत्कृ॑ण्वे॒
ऽहमु॒दरं॑ that I make its hidden hollow
शेव॒धिभ्यः॑ to keep the treasures। तेन॒ for that reason शालां॒ प्रति॑ गृह्णामि॒
तस्मै॑ I accept that house ॥
|
(द्याम्) सूर्य [के प्रकाश] (च च) और (पृथिवीम् अन्तरा) पृथिवी के बीच
(यत्) जो (व्यचः) खुला स्थान है, (तेन) उस [विस्तार] से (इमाम् शालाम्) इस शाला को
[हे मनुष्य !] (ते) तेरे लिये (प्रति गृह्णामि) मैं ग्रहण करता हूं। (यत्) जो (रजसः)
घर का (अन्तरिक्षम्) अवकाश (विमानम्) विशेष मान परिमाण युक्त है, (तत्) उस [अवकाश]
पेट (कृण्वे) बनाता हूं। (तेन) उसी [कारण] से (तस्मै) [प्रयोजन] के लिये (शालाम्)
शाला को (प्रति गृह्णामि) मैं ग्रहण करता हूं ॥१५॥
|
९.३.१६
|
ऊर्ज॑स्वती॒
one who increases strength पय॑स्वती one who is full of milk and water पृथि॒व्यां
निमि॑ता मि॒ता made on a measured land। बिभ्र॑ती वि॑श्वा॒न्नं storing various
grains मा हिं॑सीः protecting from pain शाले॒ प्रतिगृह्ण॒तः I accept that house॥
|
(शाले) हे शाला ! (पृथिव्याम्) उचित भूमि पर (मिता) परिमाण युक्त (निमिता)
जमाई गई, (ऊर्जस्वती) बल पराक्रम बढ़ानेवाली, (पयस्वती) जल और दुग्ध आदि से पूर्ण,
(विश्वान्नम्) सम्पूर्ण अन्न को (बिभ्रती) धारण करती हुई तू (प्रतिगृह्णतः) ग्रहण
करने हारों को (मा हिंसीः) मत पीड़ा दे ॥१६॥
|
९.३.१७
|
तृणै॒रावृ॑ता
Covered with grass पल॒दान्वसा॑ना॒ dressed with mortar जग॑तो रात्री॑व॒ नि॒वेश॑नी
शाला॒ the worldy nights (sadness) and happiness resides in the house। मि॒ता पृ॑थि॒व्यां
ति॑ष्ठसि settled on a measured land ह॒स्तिनी॑व प॒द्वती॑ has legs of female
elephant / is standing on fat pillars॥
|
(तृणैः) तृण आदि से (आवृता) छाई हुयी, (पलदान्) पल [अर्थात् सुवर्ण
आदि की तोल और विघटिका मुहूर्त आदि] देनेवाले [यन्त्रों] को (वसाना) पहिने हुये
(शाला) शाला तू (जगतः) संसार की (निवेशनी) सुख प्रवेश करनेवाली (रात्री इव) रात्रि
के समान [होकर] (पद्वती) पैरोंवाली [चारों पैरों पर दृढ़ खड़ी हुयी] (हस्तिनी इव)
हतिनी के समान (पृथिव्याम्) उचितभूमि पर (मिता) बनाई हुयी (तिष्ठसि) (स्थित) है ॥१७॥
|
९.३.१८
|
अपोर्णुवन् opening
अपिनद्धम् and closing joints ते॒ इत॑स्य on your pair of doors
वि चृतामि is finished by us। वरु॑णेन॒ मि॒त्रः प्रा॒तर्व्यु॑ब्जतु
congenial environment as is available in the morning समु॑ब्जितां remain controlled
/ protected (in the house)॥
|
[हे शाला !] (ते) तेरे (इटस्थ) द्वार के (अपिनद्धम्) बन्धन को (अपोर्णुवन्)
खोलता हुआ मैं () अच्छे प्रकार ग्रन्थित करता हूं। (वरुणेन) ढकनेवाले अन्धकार से
(समुब्जिताम्) दबाई हुई [तुझ] को (मित्रः) सर्वप्रेरक सूर्य (प्रातः) प्रातःकाल
(वि उब्जतु) खोल देवे ॥१८॥
|
९.३.१९
|
ब्रह्म॑णा॒
शालां॒ निमि॑तां house made by the knowledgeable क॒विभि॒र्निमि॑तां मि॒ताम् made
and measured by the skillfull। इ॑न्द्रा॒ग्नी र॑क्षतां॒ शाला॑म॒मृतौ॑ सो॒म्यं सद॑ह्
May the house protect us the way Indra and Agni does; may it gives us long
life the way Som gives॥
|
(अमृतौ) भरण रहित [सुखप्रद] (इन्द्राग्नी) पवन और अग्नि (ब्रह्मणा)
चारो वेद जाननेहारे विद्वान् करके (निमिताम्) जमाई हुई [नेव डाली गयी] (शालाम्) शाला
की, (कविभिः) विद्वानों [शिल्पियों] करके (मिताम्) मापी गई और (निमिताम्) दृढ़ बनायी
गयी (शालाम्) शाला, (सोम्यम्) ऐश्वर्य युक्त (सदः) घर की (रक्षताम्) रक्षा करें ॥१९॥
|
९.३.२०
|
कु॒लाये
ऽधि॑ कु॒लायं॒ A nest above the nest कोशः॒ कोशे॒ for treasures above treasures
समु॑ब्जितः remain controlled / protected । तत्र॒ मर्तो॒ you mortals वि जा॑यते॒
प्र॒जाय॑ते यस्मा॒द्विश्वं॑ may grow your family with births and children ॥
|
[जैसे] (कुलाये अधि) घोंसले पर (कुलायम्) घोंसला और (कोशे) कोश [निधि]
पर (कोशः) कोश [धन संचय] (समुब्जितः) यथावत् दबा होता है। [वैसे ही] (तत्र) वहां
[शाला में] (मर्तः) मनुष्य (वि जायते) विविध प्रकार प्रकट होता है, (यस्मात्) जिस
[कारण] से (विश्वम्) सब [सन्तान समूह] (प्रजायते) उत्तमता से उत्पन्न होता है ॥२०॥
|
९.३.२१
|
या द्विप॑क्षा॒
चतु॑ष्पक्षा॒ षट्प॑क्षा॒ अ॒ष्टाप॑क्षां॒ दश॑पक्षां॒ One with two, four, six,
eight or ten wings/rooms/sections या नि॑मी॒यते॑ has been built with planning ।
मान॑स्य॒ पत्नी॑म॒ग्निर्गर्भ॑ For you O respectable wife and the living foetus
शालां॒ इ॒वा श॑ये I have made this house ॥
|
(या) जो (द्विपक्षा) दो पक्षवाली [अर्थात् जिसके मध्य में एक, और पूर्व
पश्चिम में एक एक शाला हो], (चतुष्पक्षा) चार पक्षवाली [जिसके मध्य में एक और पूर्व,
पश्चिम, दक्षिण और उत्तर में एक एक शाला हो], (या) जो (षट्पक्षा) छह पक्षवाली [जिसके
बीच में बड़ी शाला और दो दो पूर्व पश्चिम और एक एक उत्तर दक्षिण में शाला हों] (निमीयते)
बनाई जाती है। [उसको और] (अष्टापक्षाम्) आठ पक्षवाली [जिसके बीच में एक और चारों
ओर दो दो शाला हों] और (दशपक्षाम्) दश पक्षवाली [जिसके मध्य में दो शाला और चारों
दिशाओं में दो दो शाला हों], [उस] (मानस्य) सम्मान की (पत्नीम्) रक्षा करनेहारी
(शालाम्) शाला में (अग्निः) जाठराग्नि और (गर्भः इव) गर्भस्थ बालक के समान (आ शये)
मैं ठहरता हूं ॥२१॥
|
९.३.२२
|
शाले॒ O
house प्र॒तीचीं॑ प्रती॒चीनः॒ In front of me and in front of you त्वा प्रैम्यहिं॑सतीम्
I rely on you। अ॒ग्निर्ह्य॒न्तराप॑श्च certainly fire / energy and water too ऋ॒तस्य॑
प्रथ॒मा द्वाः are the primary requirements for a truthful life॥
|
(शाले) हे शाला ! (प्रतीचीनः) [तेरे] सन्मुख चलता हुआ मैं (प्रतीचीम्)
[मेरे] सन्मुख होती हुयी, (अहिंसतीम्) न पीड़ा देती हुयी (त्वा) तुझको (प्र एमि)
अच्छे प्रकार प्राप्त होता हूं। (हि) निश्चय करके (अन्तः) [तेरे] भीतर (अग्निः) अग्नि
[का घर] और (आपः) जल [का स्थान] (च) और (ऋतस्य) सत्य [के ध्यान] का (प्रथमा) पहिला
(द्वाः) द्वार है ॥२२॥
|
९.३.२३
|
इ॒मा आपः॒
य॑क्ष्म॒नाश॑नीः This water, which is protects from illness, प्र properly भ॑राम्यय॒क्ष्मा
filtered I fill । सी॑दाम्य॒मृते॑न प्र to rejunuvate properly गृ॒हानुप॒ I come
home स॒हाग्निना॑ with energy ॥
|
(इमाः) इस (अयक्ष्माः) रोगरहित (यक्ष्मनाशनीः) रोगनाशक (अपः) जल को
(प्र) अच्छे प्रकार (आ भरामि) मैं लाता हूं। (अमृतेन) मृत्यु से बचानेवाले अन्न,
घृत, दुग्धादि सामग्री और (अग्निना सह) अग्नि के सहित (गृहान्) घरों में (उप= उपेत्य)
आकर (प्र) अच्छे प्रकार (सीदामि) मैं बैठता हूं ॥२३॥
|
९.३.२४
|
शाले मा
प्रति॑ मुचो पाशं॒ O House don’t ever stop being grided / constructed गु॒रुर्भा॒रो
ल॒घुर्भ॑व नः॒ become less heavy for us । व॒धूमि॑व त्वा यत्र॒कामं॑ भरामसि Alike
a wife may your all wishes be fulfilled॥
|
(शाले) हे शाला ! तू (नः) हमारे लिये [अपने] (पाशम्) बन्धन को (मा प्रति
मुचः) मत कभी छोड़, (गुरुः) भारी (भारः) बोझ तू (लघुः) हल का (भव) हो जा, (वधूम्
इव) वधू के समान (त्वा) तुझको (यत्रकामम्) जहां कामना हो वहां (भरामसि) हम पुष्ट
करते हैं ॥२४॥
|
९.३.२५
|
प्राच्या॑
दि॒शः शाला॑या॒ नमो॑ महि॒म्ने स्वाहा॑ दे॒वेभ्यः॑ स्वा॒ह्ये॑भ्यः For the East
facing Houses, we pray to the greats and give our oblations to them॥
|
(प्राच्याः दिशः) पूर्व दिशा से (शालायाः) शाला की (महिम्ने) महिमा
के लिये (नमः) अन्न हो, (स्वाह्येभ्यः) सुवाणी के योग्य (देवेभ्यः) कमनीय विद्वानों
के लिये (स्वाहा) सुवाणी [वेदवाणी] हो ॥२५॥मन्त्र २५ से ३१ तक स्वामिदयानन्दकृतसंस्कारविधि
गृहाश्रम प्रकरण में आये हैं ॥
|
९.३.२६
|
दक्षि॑णाया
दि॒शः शाला॑या॒ नमो॑ महि॒म्ने स्वाहा॑ दे॒वेभ्यः॑ स्वा॒ह्ये॑भ्यः ॥ For the South
facing Houses, we pray to the greats and give our oblations to them॥
|
(दक्षिणायाः दिशः) दक्षिण दिशा से.... म० २५ ॥२६॥
|
९.३.२७
|
प्र॒तीच्या॑
दि॒शः शाला॑या॒ नमो॑ महि॒म्ने स्वाहा॑ दे॒वेभ्यः॑ स्वा॒ह्ये॑भ्यः ॥ For the West
facing Houses, we pray to the greats and give our oblations to them॥
|
(प्रतीच्याः दिशः) पश्चिम दिशा से... म० २५ ॥२७॥
|
९.३.२८
|
उदी॑च्या
दि॒शः शाला॑या॒ नमो॑ महि॒म्ने स्वाहा॑ दे॒वेभ्यः॑ स्वा॒ह्ये॑भ्यः ॥ For the North
facing Houses, we pray to the greats and give our oblations to them॥
|
(उदीच्याः दिशः) उत्तर दिशा से... म० २५ ॥२८॥
|
९.३.२९
|
ध्रु॒वाया॑
दि॒शः शाला॑या॒ नमो॑ महि॒म्ने स्वाहा॑ दे॒वेभ्यः॑ स्वा॒ह्ये॑भ्यः ॥ For the Underground
facing Houses, we pray to the greats and give our oblations to them॥
|
(ध्रुवायाः दिशः) नीचेवाली दिशा से.... म० २५ ॥२९॥
|
९.३.३०
|
ऊ॒र्ध्वाया॑
दि॒शः शाला॑या॒ नमो॑ महि॒म्ने स्वाहा॑ दे॒वेभ्यः॑ स्वा॒ह्ये॑भ्यः ॥ For the Sky facing
Houses, we pray to the greats and give our oblations to them॥
|
(ऊर्ध्वायाः दिशः) ऊपरवाली दिशा से.... म० २५ ॥३०॥
|
९.३.३१
|
दि॒शोदि॑शः॒
शाला॑या॒ नमो॑ महि॒म्ने स्वाहा॑ दे॒वेभ्यः॑ स्वा॒ह्ये॑भ्यः ॥ For the all directioned houses, we pray to
the greats and give our oblations to them॥
|
(दिशोदिशः) प्रत्येक विदिशा से (शालायाः) शाला की (महिम्ने) महिमा के
लिये (नमः) अन्न हो, (स्वाह्येभ्यः) सुवाणी के योग्य (देवेभ्यः) कमनीय विद्वानों
के लिये (स्वाहा) सुवाणी [वेदवाणी] हो ॥३१॥
|